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"गुरुचरणों में समर्पित: श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् | अवधूत शिवानंद जी को अर्पित"

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 🪔 प्रस्तावना: गुरु उस दिव्य शक्ति का नाम है, जो हमारे भीतर की अज्ञानता को समाप्त कर ज्ञान, प्रेम और मुक्ति की ओर ले जाती है। इस युग में अवधूत शिवानंद जी जैसे दिव्य गुरु, शिवयोग के माध्यम से लाखों साधकों को चेतना और आत्मिक उपचार का मार्ग दिखा रहे हैं। उनकी पवित्र पादुकाओं को समर्पित यह स्तोत्र – "श्री गुरु पादुका स्तोत्रम्" – आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है। यह स्तोत्र केवल स्तुति नहीं, एक साधना है, एक समर्पण है, एक आभार है। 🌸 श्री गुरु पादुका स्तोत्रम् (अवधूत शिवानंद जी को समर्पित) अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां। वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥१॥ कवित्व वाराशि निशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावांबुदमालिक्याभ्यां। दूरीकृतानम्र विपत्तिताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥२॥ नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः। मूकाश्च वाचसपतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥३॥ नाली कनी काशपदाहृताभ्यां नानाविमोहादिनिवारिकाभ्यां। नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥४॥ नृपालिमौलि ब्रज रत...

जनेऊ पहनने के वैज्ञानिक और धार्मिक लाभ

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  प्राचीन भारत में उपनयन संस्कार के बाद ही किसी बालक को वेद अध्ययन, यज्ञ, और धार्मिक कर्मों का अधिकार मिलता था। इस संस्कार के अंतर्गत पहनाया जाने वाला जनेऊ (यज्ञोपवीत) न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे छुपे वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक रहस्य भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। 1. जनेऊ और स्वच्छता का संबंध जनेऊ पहनने वाले व्यक्ति को मल-मूत्र विसर्जन के समय उसे दाहिने कान पर लपेटना होता है । यह एक साफ-सफाई का संकेत है। जब तक व्यक्ति हाथ-पैर धोकर कुल्ला नहीं कर लेता, वह जनेऊ को कान से नहीं उतार सकता, जिससे उसकी स्वच्छता की आदत सुनिश्चित होती है। 2. कान और पाचन तंत्र के बीच संबंध जनेऊ को कान पर लपेटने से कान के पीछे की वे नसें सक्रिय होती हैं जिनका संबंध पेट की आंतों से है। इससे मल विसर्जन सरल होता है और कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसे रोगों से सुरक्षा मिलती है। 3. हृदय रोगों से रक्षा जनेऊ हृदय के पास से होकर गुजरता है। आयुर्वेद के अनुसार यह हृदय की विद्युत धारा को संतुलित करता है, जिससे हृदय रोगों से रक्षा होती है। 4. मानसिक विकारों से बचाव पीठ पर एक सूक्ष्म नस दाहिने कंधे से ...

अवधूत शिवानंद जी: हिमालय से उठती एक आंतरिक चिकित्सा की ज्योति

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  “हर इंसान एक दिव्यता का स्रोत है — उसे बस पहचानने की ज़रूरत है।” — डॉ. अवधूत शिवानंद जी प्रस्तावना: आत्मा की पुकार सर्दियों की एक रात थी। एक आठ वर्षीय बालक, राजस्थान की धरती पर खुले आकाश के नीचे, एकांत में बैठा आसमान की ओर निहार रहा था। मन में प्रश्नों की भीड़ थी — “मैं कौन हूँ? जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या केवल सांसारिक शिक्षा ही सब कुछ है?” तभी हिमालय से एक प्रकाशमयी उपस्थिति उसके जीवन में प्रवेश करती है — 108 स्वामी जगन्नाथ। यहीं से प्रारंभ होती है एक विलक्षण जीवन यात्रा, जो दुनिया भर के लाखों लोगों की चेतना को जागृत करने वाली बनती है। प्रथम चरण: एक बालक की आध्यात्मिक दीक्षा डॉ. अवधूत शिवानंद जी का जन्म 26 मार्च 1955 को दिल्ली में हुआ, और उनका बचपन राजस्थान में बीता। वह केवल आठ वर्ष के थे जब उन्हें हिमालय के एक योगी, 108 स्वामी जगन्नाथ का साक्षात आशीर्वाद मिला। इस छोटी सी उम्र में उन्हें एक गूढ़ मंत्र की दीक्षा मिली। यह वह क्षण था जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। उनके मन में उठते प्रश्नों का उत्तर अब उन्हें ध्यान और आत्म-अन्वेषण में मिलने लगा। उन्होंने भारत के विभिन्न प...

ध्यान और श्रीविद्या की रहस्यमयी यात्रा : एक शिवयोगी की कथा

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ध्यान और श्रीविद्या की रहस्यमयी यात्रा : एक शिवयोगी की कथा लेखक: धर्म-जिज्ञासा टीम | श्रेणी: ध्यान, योग, श्रीविद्या भारत की तपस्वी परंपरा में कुछ ऐसे संत होते हैं, जिनकी उपस्थिति मात्र से जीवन बदलने लगता है। यह कथा है एक ऐसे ही रहस्यात्मक योगी की—बाबाजी—जिन्होंने जीवन को केवल साधना में नहीं, सेवा में भी रूपांतरित किया। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक चेतना का आह्वान है, जो आज के हर व्यक्ति को अपने भीतर के शिव से मिलने के लिए प्रेरित करती है। प्रारंभ – एक बालक की आध्यात्मिक पुकार उत्तर भारत के एक शांत गांव में जन्मे बालक शैव परंपरा से जुड़े हुए थे। उनके परिवार में पूजा-पाठ का चलन था, लेकिन बालक की आँखों में जो चमक थी, वह साधारण नहीं थी। वे देवताओं से बात करते, पेड़ों से संवाद करते, और एक अनदेखी शक्ति की खोज में लगे रहते। गुरु का साक्षात्कार जीवन ने एक मोड़ तब लिया जब बालक की मुलाकात एक सिद्ध गुरु से हुई। गुरु ने न केवल उन्हें ध्यान, योग और मंत्र साधन...

ॐ नमः शिवाय: पंचाक्षर मंत्र की वैदिक महिमा

ॐ नमः शिवाय: पंचाक्षर मंत्र की वैदिक, तांत्रिक और उपनिषद् आधारित महिमा ॐ नमः शिवाय सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का मुख्य मंत्र है। इसका अर्थ है – “भगवान शिव को नमस्कार” या “उस मंगलकारी को प्रणाम”। इसे पंचाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसमें ‘ॐ’ को छोड़कर पाँच अक्षर होते हैं – “न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य” । शास्त्रीय स्रोत और वैदिक प्रमाण यह मंत्र कृष्ण यजुर्वेद के श्रीरुद्रम् चमकम् में एवं शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी में उपलब्ध है। श्रीरुद्रम् के आठवें अनुवाक में यह वाक्य आता है: "नमः शिवाय च शिवतराय च" । शिव को “शिवतर” (सर्वाधिक मंगलकारी) बताकर यह मंत्र शिव की सर्वोच्चता का परिचायक बन जाता है। पंच तत्त्व और मंत्र के अक्षरों का गूढ़ अर्थ “न” – पृथ्वी (Earth) “मः” – जल (Water) “शि” – अग्नि (Fire) “वा” – वायु (Air) “य” – आकाश (Ether) इस मंत्र के माध्यम से उपासक पंचमहाभूतों के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना में एकात्मता को अनुभव करता है। शैव सिद्धांत के अनुसार पांच शक्तियाँ “न” – तिरोधान शक्ति (गोपनीयता) ...

भोजन के २४ सनातन नियम — आरोग्य, आयु और आत्मशुद्धि का रहस्य

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🪔 भोजन के २४ सनातन नियम — आरोग्य, आयु और आत्मशुद्धि का रहस्य धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः। यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।। 👉 "धर्म-जिज्ञासा" प्रस्तुत करता है सनातन परंपरा से जुड़ी गूढ़ आहार-विधि। हमारा भोजन केवल शरीर को ऊर्जा देने वाला माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे मन, चित्त और आत्मा को भी प्रभावित करता है। सनातन धर्म में भोजन को एक यज्ञीय कर्तव्य की तरह स्वीकार किया गया है। 🍽️ भोजन से पूर्व की तैयारी पाँच अंगों (मुख, दोनों हाथ, दोनों पैर) को अच्छी तरह धोकर ही भोजन करें। गीले पैरों भोजन करने से आयु में वृद्धि होती है। भोजन प्रातः और सायं ही करना उचित माना गया है। शैय्या पर, हाथ पर रखकर, या टूटे फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करें। 🧭 भोजन की दिशा और स्थान पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन करें। दक्षिण दिशा की ओर किया भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा की ओर किया भोजन रोगों की वृद्धि करता है। पीपल, वट वृक्ष के नीचे, शोरगुल में, कलह के माहौल में, या मल-मूत्र वेग के समय भोजन नहीं करें। 🕉️ भोजन से पहल...

पितृपक्ष में श्राद्ध और पंचबली की सम्पूर्ण विधि

सनातन धर्म के अनुसार कर्म, नियम और महत्व पितृपक्ष में सनातन धर्म के अनुसार पितृगण पृथ्वीलोक पर आते हैं और अपनी संतानों से तृप्ति की अपेक्षा रखते हैं। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान उनके लिए श्रद्धा का प्रतीक है। यदि विधिवत श्राद्ध न किया जाए तो पितृ अप्रसन्न होकर परिवार पर कुप्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए प्रत्येक सनातनी गृहस्थ का यह धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की तिथि के अनुसार श्राद्ध अवश्य करे। 🔶 श्राद्ध में पंचबली की महत्ता पंचबली का अर्थ है पाँच प्रकार की बलियाँ – गो बलि (गाय को ग्रास देना) काक बलि (कौओं को अन्न देना) श्वान बलि (कुत्ते को अन्न देना) पिपीलिका बलि (चींटियों को अन्न देना) देव बलि (अग्नि को अर्पण करना) ये बलियाँ श्राद्ध के दिन पूर्वजों की तृप्ति के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना को भी दर्शाती हैं। 🕉️ श्राद्ध की विधि श्राद्ध तिथि पर प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। पवित्र स्थान पर कुश बिछाकर दक्षिणाभिमुख होकर श्राद्ध करें। तिल मिश्रित जल से तर्पण करें। खीर, पूरी, दाल, सब्जी, और विशेष रूप से लौकी या सीताफल का उपयोग करें।...

पितृ पक्ष में श्राद्ध और पंचबली की सम्पूर्ण विधि: शास्त्रों से जनकल्याण तक

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पितृ पक्ष में श्राद्ध और पंचबली की सम्पूर्ण विधि पितृ पक्ष हिंदू धर्म में वह विशेष समय है जब हम अपने पितरों (पूर्वजों) को श्रद्धा, तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से स्मरण करते हैं। यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक पारिवारिक और सामाजिक उत्तरदायित्व भी है। शास्त्रीय आधार मनु स्मृति, गरुड़ पुराण और महाभारत में श्राद्ध का विस्तार से वर्णन है। गरुड़ पुराण कहता है: “श्राद्धे काले पितॄन् यस्तु तर्पयेत श्रद्धया सदा। तेन तृप्ताः प्रयान्त्याशु स्वर्गलोकं सनातनम्॥” (गरुड़ पुराण) श्राद्ध विधि संक्षेप में तिथि अनुसार पूर्वजों का स्मरण और गोत्र नाम का उच्चारण। तर्पण (जल + तिल + कुशा) का समर्पण। पिंडदान: चावल, तिल व घी से बने पिंड अर्पण। ब्राह्मण भोजन और दान-दक्षिणा। गाय, कुत्ता, कौवा, चाण्डाल और चींटी को भोजन – जिसे पंचबली कहा जाता है। पंचबली: कौन-कौन? गो बलि – गाय को भोजन श्वान बलि – कुत्ते को अन्न काक बलि – कौए को वैष्णव बलि – ब्राह्मण या अतिथि को पिपीलिक बलि – चींटी को अन्न या गुड़ धार्मिक लाभ श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृ दो...