भोजन के २४ सनातन नियम — आरोग्य, आयु और आत्मशुद्धि का रहस्य
🪔 भोजन के २४ सनातन नियम — आरोग्य, आयु और आत्मशुद्धि का रहस्य
धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः। यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।
👉 "धर्म-जिज्ञासा" प्रस्तुत करता है सनातन परंपरा से जुड़ी गूढ़ आहार-विधि।
हमारा भोजन केवल शरीर को ऊर्जा देने वाला माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारे मन, चित्त और आत्मा को भी प्रभावित करता है। सनातन धर्म में भोजन को एक यज्ञीय कर्तव्य की तरह स्वीकार किया गया है।
🍽️ भोजन से पूर्व की तैयारी
- पाँच अंगों (मुख, दोनों हाथ, दोनों पैर) को अच्छी तरह धोकर ही भोजन करें।
- गीले पैरों भोजन करने से आयु में वृद्धि होती है।
- भोजन प्रातः और सायं ही करना उचित माना गया है।
- शैय्या पर, हाथ पर रखकर, या टूटे फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करें।
🧭 भोजन की दिशा और स्थान
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन करें।
- दक्षिण दिशा की ओर किया भोजन प्रेत को प्राप्त होता है।
- पश्चिम दिशा की ओर किया भोजन रोगों की वृद्धि करता है।
- पीपल, वट वृक्ष के नीचे, शोरगुल में, कलह के माहौल में, या मल-मूत्र वेग के समय भोजन नहीं करें।
🕉️ भोजन से पहले की भावना
- परोसे हुए भोजन की निंदा न करें।
- भोजन से पूर्व अन्नदेवता व अन्नपूर्णा माता की स्तुति करें और सभी भूखों को अन्न प्राप्त हो — यह प्रार्थना करें।
- भोजन बनाने से पहले स्नान करें, मंत्र जाप करें और शुद्ध मन से पकाएँ।
- सबसे पहले तीन रोटियाँ (गाय, कुत्ता, कौआ) के लिए निकालें और फिर अग्निदेव को भोग लगाकर घरवालों को परोसें।
😌 मनोवस्था और आचार व्यवहार
- ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, द्वेष, दीन-भावना के साथ भोजन न करें — ऐसा भोजन पचता नहीं।
- आधा खाया हुआ फल, मिठाई आदि फिर से न खाएँ।
- भोजन छोड़कर उठने के बाद दुबारा न खाएँ।
- भोजन करते समय मौन रहें।
- अच्छी तरह चबा-चबाकर खाएँ।
- रात्रि में भरपेट भोजन न करें।
- गृहस्थ को ३२ ग्रास से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए।
🍛 भोजन का क्रम
- क्रम हो: पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कड़वा।
- पहले रसदार, बीच में गाढ़ा, अंत में तरल पदार्थ।
- थोड़ा खाने वाले को आरोग्य, दीर्घायु, बल, सुंदर संतान व सौंदर्य प्राप्त होता है।
🚫 किनका भोजन वर्जित है
- जिनके हाथ का भोजन त्याज्य है:
- कुत्ते का छुआ
- रजस्वला स्त्री द्वारा परोसा
- श्राद्ध का निकाला
- बासी भोजन
- मुँह से फूँक मारकर ठंडा किया गया
- बाल गिरा हुआ, अनादरपूर्ण परोसा भोजन
- कंजूस, राजा, वेश्या, और शराब बेचने वाले का भोजन भी त्याज्य है।
- जिसने ढिंढोरा पीटकर बुलाया हो, वहाँ कभी न खाएँ।
🔚 निष्कर्ष
सनातन संस्कृति में भोजन केवल शरीर को पोषण देने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यदि हम इन नियमों का पालन करें तो न केवल शरीर स्वस्थ रहेगा, बल्कि मन निर्मल और जीवन सुखमय होगा।
📿 "यथाऽन्नं तथा मनः।"
— जैसा अन्न, वैसा मन। इसलिए अन्न को देवता मानें और उसके साथ श्रद्धा का भाव रखें।
👉 आपका मत क्या है? क्या आप इन नियमों को अपने जीवन में अपनाते हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताएं।
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✍️ लेखक: "धर्म-जिज्ञासा" संपादकीय टीम
📌 Tagline: "धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मों धारयति प्रजाः।"
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