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हनुमान का अर्थ

दुनिया चले ना श्री राम के बिना।
राम जी चले ना हनुमान के बिना।।

--हनुमान का अर्थ-
हनुमान का एक अर्थ है निरहंकारी या अभिमानरहित। हनु का मतलब हनन करना और मान का मतलब अहंकार। अर्थात जिसने अपने अहंकार का हनन कर लिया हो। यह सभी को पता है कि हनुमानजी को कोई अभिमान नहीं था। वे विनम्रता के पर्याय हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि हनु यानि ठोड़ी कटी हुई होने के कारण ही ये हनुमान कहलाए। हनुमानजी पहाड़ जैसी भारी भरकम चीजें भी आसानी से उठा लेते थे। उनके गुण आज भी हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। हम उनसे प्रेरणा लेकर अपना व्यक्तित्व निखार सकते हैं। हनुमान अपने शरीर को अत्यंत छोटा और बड़ा कर लेते थे। हनुमान महाचमत्कारी थे। ऐसी शक्ति आज के साइंटिस्ट भी खोज नहीं सके हैं। हनुमान के वैज्ञानिक होने की बात श्रीरामचरितमानस में भी है।
वन्दे विशुद्घविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥ -(रामचरितमानस १/४ मंगलाचरण)
अर्थात- महर्षि वाल्मीकि (कविश्वर) तथा महावीर हनुमान (कपिश्वर) दोनों विशुद्ध विज्ञानी हैं।

--स्त्री भी कर सकती है पूजा-
हनुमान के संदर्भ मे आम धारणा है कि उनकी पूजा महिला नहीं कर सकती। वस्तुत: यह बात भ्रामक है। महिलाएं भी साधारण पूजा कर सकती हैं लेकिन रजस्वला स्थिति में पूजा करना मना है। हनुमान की साधना केवल पुरुषों को ही करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे उनकी साधना पूरी नहीं होती। माता अंजनी पूर्व जन्म में थीं अप्सरा हनुमानजी की माता अंजनी के संबंध पुराणों में उल्लेख है कि वे पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा पुंजिकस्थला थीं। पुंजिकस्थला परम सुंदरी एवं स्वभाव बहुत ही चंचल थी। इसी अतिचंचलता के वश वह कई बार दूसरों को रुष्ट कर दिया करती थीं। ऐसे ही एक बार पुंजिकस्थला ने तपस्या में लीन एक परम तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी। ऋषि की तपस्या भंग हो गई। इससे अप्सरा पर ऋषि अति क्रोधित हो गए और उन्होंने अप्सरा को श्राप दे दिया कि वानरी की तरह स्वभाव करने वाली जा तू वानरी हो जा। ऐसा श्राप मिलने पर पुंजिकस्थला को अपनी गलती पर पश्चाताप हुआ और वह ऋषि से क्षमा याचना करने लगी। ऋषि का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने कहा श्राप का प्रभाव तो टल नहीं सकता परंतु तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा। तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगो-युगो तक अमर हो जाएगा। हुआ भी वैसा ही वह अप्सरा पुंजिकस्थला ने वानरराज कुंजर के घर पुत्री के रूपमें जन्म लिया। वानरराज ने नाम उसका कन्या का नाम रखा अंजनी। अंजनी का विवाह वानरराज केसरी के साथ हुआ और उन्होंने चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा को महावीर हनुमान को जन्म दिया। शास्त्रों में उल्लेख है कि हनुमान शिव के रुद्रावतार हैं। इनका जन्म वायुदेव के अंश और अंजनी के गर्भ से हुआ जो केसरी नामक वानर की पत्नी थी। पुत्र न होने से वह दु:खी थी। मतंग ऋषि के कहने पर अंजना ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप हनुमान का जन्म हुआ। शनिदेव भी परेशान नहीं करते हनुमान भक्त को शनिदेव का डर आजकल हर किसी के मन में रहता है। शनि की साढ़े साती और शनि ढैय्या किसी भी राजा को रंक बना सकती है। अर्थात् शनि के प्रकोप से पलभर में ही किसी पर भी दुखों का पहाड़ गिर सकता है। यदि आप हनुमान भक्त हैं तो आपको शनिदेव से कोई भय नहीं होना चाहिए। पुराणों में उल्लेख है कि एक बार हनुमान ने शनिदेव के भी प्राण की रक्षा की और उनके कष्टों का हरण किया था। तभी से शनिदेव ने प्रसन्न होकर हनुमान के भक्तों को शनि के प्रकोप से मुक्त कर दिया। श्री हनुमान को संकट मोचन कहा गया है। वे पलभर में ही भक्तों के बड़े-बड़े संकट समाप्त कर देते हैं। हनुमानजी सीताराम के आर्शीवाद से अष्टचिरंजिव में शामिल है। अत: वे भगवान शिव की तरह ही तुरंत प्रसन्न होने वाले और भक्तों पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हैं। ऐसी मान्यता है कि आज भी जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमानजी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान ने श्रीराम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है। हनुमान के नाम मात्र से ही भूत पिशाच निकट नहीं आते। सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है। हनुमानजी ही ऐसे भक्त और भगवान हैं जो हमारे सभी दुख और परेशानियों का समाधान कुछ ही क्षण में कर सकते हैं। बस आवश्यकता है तो सभी अधार्मिक कार्यों और कुसंगति को छोड़कर श्रीराम की श्रद्धा और भक्ति में मन लगाने की।

श्री हनुमान-स्तुति--

श्री हनुमान जी की स्तुति जिसमें उनके बारह नामों का उल्लेख मिलता है इस प्रकार है :
हनुमानद्द्रजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः।
रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः॥ उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः। लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः। स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत्॥ तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।

(आनंद रामायण 8/3/8-11) उनका एक नाम तो हनुमान है ही,दूसरा अंजनी सूनु,तीसरा वायुपुत्र,चौथा महाबल,पांचवां रामेष्ट (राम जी के प्रिय),छठा फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र),सातवां पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले) आठवां अमितविक्रम,नौवां उदधिक्रमण (समुद्र को लांघने वाले),दसवां सीताशोकविनाशन (सीताजी के शोक को नाश करने वाले),ग्यारहवां लक्ष्मणप्राणदाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करने वाले) और बारहवां नाम है- दशग्रीवदर्पहा(रावण के घमंड को चूर करने वाले) ये बारह नाम श्री हनुमानजी के गुणों के द्योतक हैं। श्रीराम और सीता के प्रति जो सेवा कार्य उनके द्वारा हुए हैं,ये सभी नाम उनके परिचायक हैं और यही श्री हनुमान की स्तुति है। इन नामों का जो रात्रि में सोने के समय या प्रातःकाल उठने पर अथवा यात्रारम्भ के समय पाठ करता है,उस व्यक्ति के सभी भय दूर हो जाते हैं।
मंगल मूरत मारुत नंदन,,,,, सकल अमंगल मूल निकंदन,,, पवन तनय संतान हित कारी,,,, ह्रदय विराजत अवध बिहारी,,,, प्रभु श्री हनुमान समस्त चराचर प्राणियों का कल्याण करें,,,

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