पितृपक्ष में श्राद्ध और पंचबली की सम्पूर्ण विधि
सनातन धर्म के अनुसार कर्म, नियम और महत्व
पितृपक्ष में सनातन धर्म के अनुसार पितृगण पृथ्वीलोक पर आते हैं और अपनी संतानों से तृप्ति की अपेक्षा रखते हैं। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान उनके लिए श्रद्धा का प्रतीक है। यदि विधिवत श्राद्ध न किया जाए तो पितृ अप्रसन्न होकर परिवार पर कुप्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए प्रत्येक सनातनी गृहस्थ का यह धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की तिथि के अनुसार श्राद्ध अवश्य करे।
🔶 श्राद्ध में पंचबली की महत्ता
पंचबली का अर्थ है पाँच प्रकार की बलियाँ –
- गो बलि (गाय को ग्रास देना)
- काक बलि (कौओं को अन्न देना)
- श्वान बलि (कुत्ते को अन्न देना)
- पिपीलिका बलि (चींटियों को अन्न देना)
- देव बलि (अग्नि को अर्पण करना)
ये बलियाँ श्राद्ध के दिन पूर्वजों की तृप्ति के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना को भी दर्शाती हैं।
🕉️ श्राद्ध की विधि
- श्राद्ध तिथि पर प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पवित्र स्थान पर कुश बिछाकर दक्षिणाभिमुख होकर श्राद्ध करें।
- तिल मिश्रित जल से तर्पण करें।
- खीर, पूरी, दाल, सब्जी, और विशेष रूप से लौकी या सीताफल का उपयोग करें।
- ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।
📿 तर्पण कैसे करें?
तर्पण हेतु आवश्यक सामग्री:
- तिल (काले)
- कुशा
- पवित्र जल (नदी, कुआँ या RO जल)
तर्पण करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ पितृभ्यः स्वधायै नमः।
ॐ मातामहाभ्यः स्वधायै नमः।
ॐ पितामहाय स्वधायै नमः।
⚠️ श्राद्ध के नियम
- श्राद्ध करते समय ब्रह्मचर्य पालन करें।
- श्राद्ध दिवस पर मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन, तामसिक भोजन वर्जित है।
- बाल कटवाना, नाखून काटना, विवाह या मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।
- श्राद्धकर्ता को दिनभर सात्विकता बनाए रखनी चाहिए।
📅 किस दिन किसका श्राद्ध करें?
तिथि | किसका श्राद्ध करें |
---|---|
प्रतिपदा | अप्राकृतिक मृत्यु वाले स्त्री-पुरुष |
द्वितीया | बाल्यावस्था में मृत बच्चे |
तृतीया | स्त्री और सती |
चतुर्थी | बाल ब्रह्मचारी |
अमावस्या | सर्वपितृ अमावस्या, जिनकी तिथि ज्ञात न हो |
🔍 पितृदोष शांति के उपाय
- गया, प्रयाग, हरिद्वार, नासिक या वाराणसी में पिंडदान करें।
- पितरों के नाम से किसी निर्धन को भोजन या वस्त्र दान करें।
- हर अमावस्या को काले तिल और जल से तर्पण करें।
- घर में पीपल का वृक्ष लगाएं और नियमित जल दें।
🙏 निष्कर्ष
पितृपक्ष आत्मशुद्धि, कृतज्ञता और धर्म पालन का महान अवसर है। यदि हम श्रद्धा व विधिपूर्वक श्राद्ध करते हैं, तो पितृ प्रसन्न होते हैं और हमारे जीवन में संतुलन, सुख और सफलता प्रदान करते हैं। यह न केवल पूर्वजों की सेवा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आध्यात्मिक संपदा भी है।
धर्म-जिज्ञासा पर आप ऐसे ही लेखों के लिए जुड़े रहें।
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