ॐ नमः शिवाय: पंचाक्षर मंत्र की वैदिक महिमा

ॐ नमः शिवाय: पंचाक्षर मंत्र की वैदिक, तांत्रिक और उपनिषद् आधारित महिमा

ॐ नमः शिवाय सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का मुख्य मंत्र है। इसका अर्थ है – “भगवान शिव को नमस्कार” या “उस मंगलकारी को प्रणाम”। इसे पंचाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसमें ‘ॐ’ को छोड़कर पाँच अक्षर होते हैं – “न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य”

शास्त्रीय स्रोत और वैदिक प्रमाण

यह मंत्र कृष्ण यजुर्वेद के श्रीरुद्रम् चमकम् में एवं शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी में उपलब्ध है। श्रीरुद्रम् के आठवें अनुवाक में यह वाक्य आता है: "नमः शिवाय च शिवतराय च"

शिव को “शिवतर” (सर्वाधिक मंगलकारी) बताकर यह मंत्र शिव की सर्वोच्चता का परिचायक बन जाता है।

पंच तत्त्व और मंत्र के अक्षरों का गूढ़ अर्थ

  • “न” – पृथ्वी (Earth)
  • “मः” – जल (Water)
  • “शि” – अग्नि (Fire)
  • “वा” – वायु (Air)
  • “य” – आकाश (Ether)

इस मंत्र के माध्यम से उपासक पंचमहाभूतों के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना में एकात्मता को अनुभव करता है।

शैव सिद्धांत के अनुसार पांच शक्तियाँ

  • “न” – तिरोधान शक्ति (गोपनीयता)
  • “मः” – जगत (संसार)
  • “शि” – शिव
  • “वा” – अनुग्रह शक्ति (प्रकाशन)
  • “य” – आत्मा

जप की परंपरा और मंत्र दीक्षा

इस मंत्र का पारंपरिक जाप रुद्राक्ष माला पर 108 बार किया जाता है। गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा प्राप्त करने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यह जप योग का हिस्सा माना जाता है और पूजा, ध्यान, हवन आदि में इसका प्रयोग किया जाता है।

ॐ (ओंकार) का अद्वितीय महत्व

ओंकार या प्रणव को वैदिक साहित्य में ईश्वर का वाचक माना गया है। उपनिषदों में इसे ब्रह्म प्राप्ति का प्रमुख साधन कहा गया है:

“प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।” – मुण्डकोपनिषद्

“अ”, “उ”, “म” के साथ बिंदु, नाद, अर्धचंद्र, शक्ति आदि योगिक अवस्थाएँ बताई गई हैं, जो क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म और अंत में परमशिव तक की यात्रा कराती हैं।

ओंकार के योगिक रहस्य

स्वच्छंद तंत्र और योगशास्त्र के अनुसार, ओंकार के विभिन्न अवयव (अ, उ, म, बिंदु, नाद) ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र, जगत की अवस्थाएँ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) और तुरीय चेतना तक की सूक्ष्म यात्रा के प्रतीक हैं।

मंत्र का प्रभाव और लाभ

  • मन को शांत करता है
  • अंतरदृष्टि और आत्मज्ञान देता है
  • शारीरिक और मानसिक रोगों में उपयोगी
  • ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक
  • शिव से निकटता का मार्ग

निष्कर्ष:

“ॐ नमः शिवाय” केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना, तत्वज्ञान, शिव की कृपा और मोक्ष का द्वार है। इसके निरंतर जप से साधक ‘शिवमयं’ हो जाता है – यानी समस्त जगत में शिव को अनुभव करता है।

हर हर महादेव!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अवधूत शिवानंद जी (Avdhoot Shivanand Ji) Biography

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कलियुग के अंत का वर्णन :

हनुमान का अर्थ