शिवताण्डव स्तोत्रम् – रावण द्वारा रचित भगवान शिव की महागाथा

"धर्म-जिज्ञासा" ब्लॉग में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं एक अत्यंत प्रभावशाली, उर्जावान और भक्तिपूर्ण स्तोत्र – "शिवताण्डव स्तोत्रम्" । इसकी रचना लंका के पराक्रमी राजा रावण ने की थी। यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव रूप का जीवंत, शक्तिशाली और लयबद्ध वर्णन करता है। 🔱 स्तोत्र का मूल स्रोत और महत्व "शिवताण्डव स्तोत्रम्" वह दिव्य रचना है जिसे रावण ने तब प्रस्तुत किया था जब उसने कैलाश पर्वत को उठाने का दुस्साहस किया था और भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। तब रावण को अपनी गलती का भान हुआ और उसने भगवान शिव की आराधना में यह स्तोत्र रचा। यह स्तोत्र ना केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि इसकी लय, गति और ध्वनि-संयोजन इसे अत्यंत प्रभावशाली बनाते हैं। तांडव की ध्वनि — "डमड डमड डमड" — पूरे स्तोत्र में गूंजती रहती है। जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥ जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी_ विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धग...