जनेऊ पहनने के लाभ !!

पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को पढऩे का अधिकार मिलता था। मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है,जिससे कब्ज, एसीडीटी,पेट रोग,मूत्रेन्द्रिय रोग,रक्तचाप,हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत,मुंह,पेट,कृमि,जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है। यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग ...