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कल्याणकारी पंचमुखी हनुमान !!


ॐ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा ।
नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखे सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखे
करालवदनाय नर-सिंहाय सकल
भूत-प्रेत-प्रमथनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखे
गरुडाय सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखे
आदि-वराहाय सकलसम्पतकराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखे
हयग्रीवाय सकलजनवशीकरणाय स्वाहा ।
आप सभी का दिवस बरस मंगलमय हो,,,
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हों,,,
कल्याणकारी पंचमुखी हनुमान !!
श्री राम की रक्षा के लिए हनुमान जी ने धरा
पंचमुखी रूप !!
अंजनीसुत महावीर श्रीराम भक्त हनुमान ऐसे भारतीय पौराणिक चरित्र हैं जिनके व्यक्तित्व के सम्मुख युक्ति,भक्ति, साहस एवं बल स्वयं ही बौने नजर आते हैं।
संपूर्ण रामायण महाकाव्य के वह केंद्रीय पात्र हैं।
श्री राम के प्रत्येक कष्टï को दूर करने में उनकी
प्रमुख भूमिका है।
इन्हीं हनुमान जीका एक रूप है पंचमुखी हनुमान।
यह रूप उन्होंने कब क्यों और किस उद्देश्य से
धारण किया इसके संदर्भ में पुराणों में एक
अद्भुत कथा वर्णित है।
श्रीराम-रावण युद्ध के मध्य एक समय ऐसा आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण का स्मरण करना पड़ा।
वह तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का अनन्य भक्त था।
अपने भाई रावण के संकट को दूर करने का उसने एक सहज उपाय निकाल लिया।
यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का ही अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध तो स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।
उसने ऐसी माया रची कि सारी सेना प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हो गयी और वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया।
जागने पर जब इस संकट का भान हुआ और विभीषण ने यह रहस्य खोला कि ऐसा दु:साहस
केवल अहिरावण ही कर सकता है तो सदा की
भांति सबकी आंखें संकट मोचन हनुमानजी
पर ही जा टिकीं।
हनुमान जी तत्काल पाताल लोक पहुंचे।
द्वार पर रक्षक के रूप में मकरध्वज से युद्ध
कर और उसे हराकर जब वह पातालपुरी के
महल में पहुंचे तो श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को
बंधक-अवस्था में पाया।
वहां भिन्न-भिन्न दिशाओं में पांच दीपक जल
रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं
लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी।
अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों
को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा।
यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।
उत्तर दिशा में वराह मुख,दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख,आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।
इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त किया।
सागर पार करते समय एक मछली ने उनके स्वेद की एक बूंद ग्रहण कर लेने से गर्भ धारण कर मकरध्वज को जन्म दिया था अत: मकरध्वज हनुमान जी का पुत्र है,ऐसा जानकर श्रीराम ने मकरध्वज को पातालपुरी का राज्य सौंपने का हनुमान जी
को आदेश दिया।
हनुमान जी ने उनकी आज्ञा का पालन किया
और वापस उन दोनों को लेकर सागर तट पर युद्धस्थल पर लौट आये।
हनुमान जी के इस अद्भुत स्वरूप के विग्रह देश
में कई स्थानों पर स्थापित किए गए हैं।
इनमें रामेश्वर में स्थापित पंचमुखी हनुमान मंदिर
में इनके भव्य विग्रह के संबंध में एक भिन्न कथा है।
पुराण में ही वर्णित इस कथा के अनुसार एकार एक असुर,जिसका नाम मायिल-रावण था,भगवान विष्णु का चक्र ही चुरा ले गया।
जब आंजनेय हनुमान जी को यह ज्ञात हुआ
तो उनके हृदय में सुदर्शन चक्र को वापस
लाकर विष्णु जी को सौंपने की इच्छा
जाग्रत हुई।
मायिल अपना रूप बदलने में माहिर था।
हनुमान जी के संकल्प को जानकर भगवान
विष्णु ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया,साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिम्ह-मुख तथा हयग्रीव एवं वराह मुख प्रदान किया।
पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया।
यह आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मायिल पर विजय प्राप्त करने में
सफल रहे।
तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी
मान्यता प्राप्त हुई।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि उनके इस पंचमुखी विग्रह की आराधना से कोई भी व्यक्ति नरसिम्ह
मुख की सहायता से शत्रु पर विजय,गुरुड़ मुख
की सहायता से सभी दोषों पर विजय वराहमुख
की सहायता से समस्त प्रकार की समृद्धि एवं
संपत्ति तथा हयग्रीव मुख की सहायता से ज्ञान
को प्राप्त कर सकता है।
हनुमान स्वयं साहस एवं आत्मविश्वास पैदा करते हैं।
इस स्वरूप का दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर प्रख्यात संत राघवेंद्र स्वामी के ध्यान स्थल कुंभकोरण-तमिलनाडु में है।
तमिलनाडु के ही थिरुबेल्लूर नगर में पंचमुखी
हनुमान जी की 12 मीटर ऊंची हरे ग्रेनाइट की
प्रतिमा है।
अन्य कई स्थानों पर भी पंचमुखी स्वरूप के छोटे-बड़े मंदिर हैं।
शक्ति,आत्मविश्वास,विनम्रता,भक्ति,विश्वसनीयता
एवं ज्ञान के अपार भंडार हनुमान ही वास्तव में ऐसे पुराण-पुरुष हैं जो न केवल अपने आराधकों वरन् संपूर्ण विश्व को भय एवं संकटों से मुक्त करते हैं और उनका संपूर्ण चरित्र एक ही संदेश देता है महावीर बनना है तो पहले हनुमान बनना होगा।
हनुमान अर्थात् वह जिसने अपने अभिमान का हनन कर लिया है।
मान्यता है कि भक्तों का कल्याण करने के लिए ही पंचमुखीहनुमान का अवतार हुआ।
हनुमानजी का एकमुखी,पंचमुखी और एकादशमुखीस्वरूप प्रसिद्ध है।
चार मुख वाले ब्रह्मा,पांच मुख वाली गायत्री,
छह मुख वाले कार्तिकेय,चतुर्भुजविष्णु,अष्टभुजी
दुर्गा,दशमुखीगणेश के समान पांच मुख वाले
हनुमान की भी मान्यता है।
पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष
कृष्णाष्टमी को माना जाता है।
शंकर के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने
जाते हैं।
इसकी आराधना से बल,कीर्ति,आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
आनंद रामायण के अनुसार, विराट स्वरूप वाले हनुमान पांच मुख,पंद्रह नेत्र और दस भुजाओं से सुशोभित हैं।
हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व,पश्चिम,उत्तर,
दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं।
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख
वानर का है।
जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के समान है।
पूर्व मुख वाले हनुमान का स्मरण करने से
समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का है।
ये विघ्न निवारक माने जाते हैं।
गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर
माने जाते हैं।
हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है।
इनकी आराधना करने से सकल सम्पत्ति की
प्राप्ति होती है।
भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए हनुमान भगवान
नृसिंह के रूप में स्तंभ से प्रकट हुए और हिरण्यकश्यपुका वध किया।
यही उनका दक्षिणमुख है।
उनका यह रूप भक्तों के भय को दूर करता है।
श्री हनुमान का ऊ‌र्ध्वमुख घोडे के समान है।
ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर उनका यह रूप प्रकट
हुआ था।
मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के
लिए वे अवतरित हुए।
कष्ट में पडे भक्तों को वे शरण देते हैं।
ऐसे पांच मुंह वाले रुद्र कहलाने वाले हनुमान बडे दयालु हैं।
हनुमतमहाकाव्य में पंचमुखीहनुमान के बारे में
एक कथा है।
एक बार पांच मुंह वाला एक भयानक राक्षस
प्रकट हुआ।
उसने तपस्या करके ब्रह्माजीसे वरदान पाया
कि मेरे रूप जैसा ही कोई व्यक्ति मुझे मार सके।
ऐसा वरदान प्राप्त करके वह भयंकर उत्पात
मचाने लगा।
सभी देवताओं ने भगवान से इस कष्ट से छुटकारा मिलने की प्रार्थना की।
तब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने वानर, नरसिंह,गरुड,अश्व और शूकर का पंचमुख
स्वरूप धारण किया।
मान्यता है कि पंचमुखीहनुमान की पूजा-अर्चना
से सभी देवताओं की उपासना का फल मिलता है।
हनुमान के पांचों मुखों में तीन-तीन सुंदर आंखें आध्यात्मिक,आधिदैविक तथा आधिभौतिक
तीनों तापों को छुडाने वाली हैं।
ये मनुष्य के सभी विकारों को दूर करने वाले
माने जाते हैं।
पंचमुखी हनुमान जी की उपासना से किए गए
सभी बुरे कर्म एवं चिंतन के दोषों से मुक्ति प्रदान
करने वाला हैं।
पांच मुख वाले हनुमान जी की प्रतिमा धार्मिक
और तंत्र शास्त्रों में चमत्कारिक मानी गई है।
शत्रुओं का नाश करने वाले हनुमानजी का
हमेशा स्मरण करना चाहिए।
अथ श्रीपञ्चमुखी-हनुमत्कवचम् ।।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वाङ्ग-सुन्दरी ।
यत्कृतं देवदेवेशि ध्यानं हनुमतः परम् ।। १।।
पञ्चवक्त्र महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थ सिद्धिदम् ।। २।।
पूर्वं तु वानरं वक्त्र कोटिसूर्यसमप्रणम् ।
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रकुटी कुटिलेक्षणम् ।। ३।।
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्र तेजवपुषं भीषणं भयनाशनम् ।। ४।।
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वज्रतुण्डं महाबलम् ।
सर्वनागप्रशमनं विषभुतादिकृतन्तनम् ।। ५।।
उत्तरं सौकर वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।
पातालसिद्धिवेतालज्वररोगादि कृन्तनम् ।। ६।।
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।
खङ्ग त्रिशूल खट्वाङ्गं पाशमंकुशपर्वतम् ।। ७।।
मुष्टिद्रुमगदाभिन्दिपालज्ञानेनसंयुतम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं यजामहे ।। ८।।
प्रेतासनोपविष्टं त सर्वाभरणभूषितम् ।
दिव्यमालाम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।। ९।।
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ।। १०।।
पञ्चास्यमच्युतमनेक विचित्रवर्णं चक्रं
सुशङ्खविधृतं कपिराजवर्यम् ।
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ।। ११।।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशोक-विनाशनम् ।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रियं दापयमे हरिम् ।। १२।।
हरिमर्कटमर्कटमन्त्रमिमं परिलिख्यति भूमितले ।
यदि नश्यति शत्रु-कुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामकरः ।। १३।।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा ।
नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखे सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखे
करालवदनाय नर-सिंहाय सकल
भूत-प्रेत-प्रमथनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखे
गरुडाय सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखे
आदि-वराहाय सकलसम्पतकराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखे
हयग्रीवाय सकलजनवशीकरणाय स्वाहा ।
समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व का
कल्याण करो प्रभु श्री हनुमान !!

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